मेरे मरने के बाद मीटिंग में मेरे कपड़े लेकर जाना
पिता से किया वादा निभा रही बेटी, 32 साल से बकाया मिलने की राह देख रहे हुकुमचंद मिल के श्रमिक
वह कई सालों से अपने पिता के साथ हर रविवार को हुकुमचंद मिल श्रमिक संघर्ष समिति की मीटिंग शामिल होने आती थी। पिता को भरोसा था कि उनके सहित 6 हजार मिल श्रमिकों का बकाया रुपया कभी तो मिलेगा लेकिन उनके जीते जी नहीं मिल पाया। दो साल पहले इस महिला के पिता की बीमारी से मौत हो गई।
मरने के पूर्व पिता ने बेटी को कहा कि यह लड़ाई मेरे अकेले की नहीं है बल्कि मिल के सारे श्रमिकों की है। मेरे भी खून-पसीना से कमाया गया 4.50 लाख रु. बकाया है। मेरी मौत के बाद भी इस श्रमिक संघर्ष में पूरा साथ देना और हर हफ्ते मीटिंग में शामिल होना।
पिता ने बेटी से यह भी कहा कि मेरे मरने के बाद हर मीटिंग में मेरे कपड़े लेकर जाना ताकि सरकार को, मेरे साथी श्रमिकों को भी मेरी उपस्थिति का एहसास होता रहे। तब से यह महिला हर हफ्ते के मीटिंग में एक थैली में अपने पिता के कपड़े साथ में लेकर आती है। उसका मानना है कि आज पिता भले ही गुजर गए हो लेकिन उनके शर्ट-पेंट उनकी मौजदूगी का एहसास कराते हैं।
2200 से ज्यादा श्रमिकों की मौत, 70 आत्महत्याएं
32 सालों से चल रहे संघर्ष में 2200 से ज्यादा श्रमिकों मौत हो चुकी है। जबकि आर्थिक तंगी के चलते 70 श्रमिक आत्महत्या कर चुके हैं। इन श्रमिकों के परिवारों की 700 महिलाओं (पत्नियों) की भी मौत हो चुकी है। कुछ की तो तीसरी पीढ़ी पैसों के लिए चक्कर काट रही है।
बेटे का फर्ज निभाती बेटी
इन्हीं में श्रमिक स्व. भगवानदास जाधव भी थे जिनकी पत्नी की काफी साल पहले ही मौत हो चुकी थी। उनकी चार बेटियों और दो बेटों हैं। इनमें लता सबसे बड़ी है। इन सभी की शादियां हो चुकी है। लता की शादी 32 साल पहले हुई थी लेकिन पति शराब पीकर मारपीट करता था। इसके चलते पिता ने लता को अपने पास ही बुला लिया।
इस बीच लता के एक भाई की बीमारी से मौत हो गई। उधर, 1991 में मिल बंदी के दौरान 6 हजार श्रमिकों का करोड़ों रुपए बकाया हो गया। इनमें भगवानदास का भी 4.50 लाख रुपए से ज्यादा बकाया था। तब अपनी बकाया राशि को लेकर श्रमिकों ने हुकुमचंद मिल संघर्ष समिति बनाई जिसका संघर्ष 32 सालों से चल रहा है।
हाई कोर्ट और सरकार से उम्मीद, पिता की कमाई की राशि मिलेगी
लता ने बताया कि मैं घर में सबसे बड़ी हूं। मां का कई साल पहले निधन हो चुका था तब से घर की जिम्मेदारी मुझ पर थी क्योंकि सब मुझसे छोटे हैं। शादी के सालभर में ही पति ने प्रताड़ित करना शुरू कर दिया तो पिता से यह देखा नहीं गया। मेरे गर्भवती होने के दौरान पिता मुझे घर ले आए और मैं खुद की सिलाई का काम करने लगी।
आज मेरा बेटा 31 साल का है और प्राइवेट जॉब करता है। कुछ समय पहले छोटे भाई की हार्ट अटैक से मौत हो गई। अब भाभी व उनके दोनों बच्चों की जिम्मेदारी भी मुझ पर है। मेरे बेटे की भी शादी हो चुकी है उसे भी एक बेटा है। इन सभी को साथ में रखना और जिम्मेदारी संभालना यही मेरा जीवन है। मुझे हाई कोर्ट और सरकार से उम्मीद है कि पिता की मेहनत की कमाई हमें ब्याज सहित मिलेगी।
…तो 32 साल बाद मनेगी वास्तविक दीपावली
दूसरी ओर श्रमिकों की बकाया 174 करोड़ के अलावा करीब 44 करोड़ रुपए के लिए भी अभी संघर्ष चल रहा है। हाल ही में प्रदेश सरकार ने चुनाव से पहले अपनी आखिरी कैबिनेट बैठक में श्रमिकों को मूल राशि के ब्याज का 50 फीसदी देने का फैसला लिया है।
इस तरह जल्द ही श्रमिकों को 218 करोड़ रुपए मिलेंगे। मिल की करीब 42.5 एकड़ जमीन पर हाउसिंग बोर्ड रेसीडेंशियल और कॉमर्शियल प्रोजेक्ट लाएगा और उसके एवज में मजदूरों सहित अन्य बकायादार को पैसे देगा। संघर्ष समिति के प्रमुख नरेंद्र श्रीवंश और हरनाम सिंह धालीवाल ने बताया सालों बाद श्रमिकों के चेहरे पर मुस्कान आई है।
शुक्रवार को हाई कोर्ट में मजदूरों की याचिका पर सुनवाई होगी। श्रमिकों को उम्मीद है हाउसिंग बोर्ड कोर्ट में बकाया और ब्याज की राशि का चेक जमा कर देगा। कुल 88 के बजाए 44 करोड़ ब्याज मिल रहा है, उससे भी हम संतुष्ट हैं। अगर दीपावली के पहले यह राशि श्रमिकों के खाते में जमा हो जाती है तो 32 साल पहले यह पहला मौका होगा जब श्रमिकों की वास्तविक दीपावली मनेगी।