सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिकाकर्ता पर 5 लाख रुपए का जुर्माना लगाते हुए उसकी जनहित याचिका (PLI) को पब्लिसिटी पाने का ओछा तरीका बताया है। याचिकाकर्ता ने जनहित याचिका में कहा था कि बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की शपथ दोषपूर्ण है।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को गवर्नर शपथ दिलाते हैं और इसके बाद ही उन्हें सदस्यता दी जाती है। ऐसे में इस तरीके की आपत्ति नहीं उठाई जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट बोला- ऐसी याचिकाओं से कोर्ट का समय खराब होता है
बेंच में शामिल जज जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने कहा कि हमारी राय है कि ऐसी याचिकाओं से कोर्ट का समय खराब होता है और गंभीर मुद्दों से कोर्ट का ध्यान भटकता है। ऐसी याचिकाएं न्यायपालिका के मैनपावर और रजिस्ट्री का दुरुपयोग करती हैं।
जजों ने कहा कि अब ऐसा समय आ गया है जब कोर्ट को ऐसी व्यर्थ याचिकाएं दाखिल करने पर जुर्माना लगाना शुरू करना चाहिए। बेंच ने कहा कि हम याचिकाकर्ता पर 5 लाख रुपए का जुर्माना लगाते हुए इस याचिका को रद्द करते हैं। ये जुर्माना याचिकाकर्ता को 4 हफ्ते के अंदर भरना होगा।
याचिकाकर्ता बोला- संविधान की तीसरी अनुसूची का उल्लंघन हुआ
ये याचिका अशोक पांडे ने दाखिल की थी। उनका कहना था कि बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को दोषपूर्ण शपथ दिलाई गई है। उन्होंने संविधान की तीसरी अनुसूची का उल्लंघन करते हुए शपथ के दौरान अपना नाम लेने से पहले ‘मैं’ शब्द नहीं कहा।
याचिकाकर्ता ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि दमन और दीव और दादरा व नागर हवेली केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधियों को इस शपथ समारोह के लिए आमंत्रित नहीं किया गया था।