उत्तरकाशी में चारधाम प्रोजेक्ट की सिल्क्यारा टनल में रेस्क्यू ऑपरेशन सात दिन बाद भी पूरा न होने पर अंदर फंसे लोगों के परिजनों में निराशा और गुस्सा झलकने लगा है। अलग-अलग राज्यों के मजदूरों के परिजन उत्तरकाशी पहुंच रहे हैं। कई परिजन तो टनल के पास ही रात गुजार रहे हैं।
झारखंड सरकार ने अपने राज्य मजदूरों को निकालने के लिए स्पेशल IAS अफसर भुवनेश प्रताप सिंह को तैनात किया है। वह मजदूरों के बाहर आने के बाद उन्हें हवाई जहाज से वापस ले जाने के लिए तैयार हैं। अंदर मौजूद 41 लोगों में से सबसे ज्यादा 15 लोग झारखंड से और उसके बाद 8 लोग यूपी के हैं।
शुक्रवार को 41 में से 2 लोगों की तबीयत खराब हो गई थी, जिसमें से एक को अस्थमा और दूसरे को डायबिटीज की शिकायत है। इन्हें फूड सप्लाई वाले पाइप से दवाई भेजी जा रही है।
सही जानकारी न मिलने से परेशान और बेचैन हैं परिजन
टनल में फंसे 41 लोगों के परिजन रेस्क्यू ऑपरेशन की सही जानकारी न मिलने से अधीर हो रहे हैं। टनल में फंसे लोगों की उनके परिजनों से बातचीत तो करवाई जा रही है, लेकिन रेस्क्यू ऑपरेशन की सही तस्वीर साफ नहीं की जा रही। दिन में एक से दो बार अंदर फंसे लोगों की परिजनों की से बात करवाने के लिए प्रशासन की ओर से पास जारी किया जा रहा है। लेकिन शुक्रवार को दिन भर रेस्क्यू ऑपरेशन को लेकर उलझन की स्थिति बनी रही।बार-बार बयान बदलते रहे अधिकारी, नहीं हुआ काम
शुक्रवार सुबह DM ने उत्तरकाशी में पत्रकारों को जानकारी दी कि टनल में 30 मीटर तक रेस्क्यू पाइप डाले जा चुके हैं। फिर दोपहर में खबर आई कि रेस्क्यू का काम रोकना पड़ा है। नेशनल हाईवेज एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन यानी NHIDCLके डायरेक्टर अंशु मनीष खालको ने कहा कि 24 मीटर तक ड्रिलिंग हो चुकी है और काम जारी है। कुछ अधिकारी दबी जुबान 22 मीटर खुदाई की बात भी कह रहे थे। शुक्रवार सुबह तक टनल में 24 मीटर पाइप डाले जा चुके थे और उसके बाद काम आगे नहीं बढ़ सका।हैवी ऑगर्स मशीन के खराब होने को लेकर भी सच्चाई छिपाते रहे अधिकारी
15 नवंबर को उत्तरकाशी पहुंची हैवी अमेरिकी ड्रिलिंग मशीन ऑगर्स के सामने शुक्रवार सुबह टनल में बड़ा पत्थर आ गया था। इसके बाद यह मशीन काम जारी नहीं रख सकी। जानकारी मिली कि मशीन खराब हो गई है तो NHIDCLके डायरेक्टर अंशु मनीष खालको की ओर से कहा गया कि धीरे-धीरे काम जारी है। फिर बताया गया कि मशीन रेस्ट कर रही है लेकिन खुदाई का काम आगे नहीं बढ़ सका। इससे न केवल परिजन बल्कि स्थानीय लोग भी नाराज हैं।
12 नवंबर को तड़के चार बजे टनल धंसनी शुरू हुई तो टनल में काम कर रहे कुछ लोग जान बचाकर वहां से निकलने में कामयाब रहे। इस हादसे से बचकर निकले लोगों ने मौत का भयानक मंजर बयां किया।
ऐसा लगा जैसे आसमान गिर रहा हो, सोचकर कांपती है रूह
हादसे के वक्त टनल में मौजूद ड्रिलिंग मशीन ऑपरेटर एसपी सिंह ने बताया कि जब टनल धंसने लगी तो वह उसी एरिया में थे। वह कुछ कर्मचारियों के साथ सुरंग से बाहर की ओर निकलने में कामयाब रहे। उन्होंने कहा कि अब सोचकर भी डर लगता है कि हम लोग टनल के ढाई-तीन किलोमीटर अंदर काम कर रहे थे। रोज काम करने पर यह अहसास कभी नहीं हुआ कि हम इतने अंदर हैं कि कुछ अनहोनी होने पर फंस भी सकते हैं। ये हमारा रोज का ही काम था।
करीब 25 लोगों ने भागकर बचाई अपनी जान, 41 फंसे रह गए
12 नवंबर की सुबह जब टनल धंसने लगी तो नाइट शिफ्ट में करीब 65 लोग काम कर रहे थे। 25 लोगों जो टनल धंसने वाली जगह के करीब थे, उन्हें वहां से बाहर की ओर निकलने का मौका मिल गया था। जो 41 लोग इस जगह से आगे थे, वे खतरे का सायरन बजने पर भी बाहर की ओर नहीं आ सके। तब तक मलबा टनल का रास्ता रोक चुका था। एक और मशीन ऑपरेटर शुभम मंडल का रूममेट वीरेंद्र टनल में फंसा है। उन्होंने बताया कि जब अचानक से टनल धंसी तो सारा मलबा अंदर आने लगा। अंदर फंसे लोगों को बाहर निकलने का मौका नहीं मिला। इसमें ही उनका एक साथी अंदर रह गया।टनल के अंदर न बिस्तर-न ही गर्म कपड़े, पानी-लाइट का इंतजाम
टनल में फंसे लोगों के पास अतिरिक्त गर्म कपड़े या गर्म बिस्तर नहीं है। गनीमत है कि सुरंग के अंदर लाइट जा रही है और पानी का भी इंतजाम है। ऑक्सीजन सप्लाई बाहर से की जा रही है। अंदर फंसे लोगों से जब हाल-चाल लिया गया तो उन्होंने बहुत ज्यादा ठंड न होने की बात कही लेकिन वे जल्दी टनल खुलने की उम्मीद में हैं। प्रोजेक्ट के अफसर बाहर वॉकी-टॉकी से उनकी काउंसिलिंग कर रहे हैं ताकि वे हिम्मत बनाए रखें। टनल में फंसे लोगों को लिक्विड डाइट कम दी जा रही है।
एक कमरे में 8-10 बिस्तर, 41 बिस्तर एक हफ्ते से खाली
दैनिक भास्कर टनल से कुछ दूर यहां फंसे लोगों के रहने वाले इलाके तक भी पहुंचा। साथियों के फंसे होने का दर्द टनल से निकले लोग भी महसूस कर रहे हैं। मूल रूप से झारखंड के रहने वाले मशीन ऑपरेटर वीरेंद्र खिसकू 12 नवंबर की सुबह टनल में फंस गए। उनके साथ काम करने वाले एसपी सिंह ने टनल धंसने का आंखों देखा हाल सुनाया।
एसपी सिंह बताते हैं कि रात की शिफ्ट पूरी कर वह सुबह टनल से बाहर निकल रहे थे। वीरेंद्र और दूसरे लोगों को भी बाहर आना था। लेकिन, जैसे ही एसपी सिंह बाहर निकले उसके तुरंत बाद ही टनल के अंदर लैंडस्लाइड हो गई। मैकेनिकल डिपार्टमेंट में काम करने वाले शुभम मंडल का कहना है वह तो टनल से बचकर बाहर आ गए। लेकिन उनके साथी अभी फंसे हैं। उन्होंने भी अपने फंसे हुए साथियों से बात की है।
उत्तराखंड के कोटद्वार से भारत सिंह नेगी का छोटा भाई टनल के अंदर फंसा हुआ है। वे पिछले चार दिनों से टनल के बाहर रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले से आए निर्भय ने बताया कि उनका भांजा भी टनल में फंसा हुआ है। हालांकि, उनकी एक बार उससे बात कराई गई है लेकिन कब उन्हें बाहर निकल जाएगा इसकी सही जानकारी उन्हें नहीं मिल पा रही है।
41 में से 2 मजदूरों की तबीयत खराब, एक को अस्थमा-दूसरे को डायबिटीज
शुक्रवार को टनल में फंसे 41 लोगों में से 2 की तबीयत खराब हो गई। इनमें से एक अस्थमा और दूसरा डायबिटीज से पीड़ित है। खाना और पानी भेजने वाले पाइप से इनकी दवाई भी नियमित तौर पर भेजी जा रही है। अंदर फंसे लोगों को खाने के लिए भुने और अंकुरित चने, बिस्किट, ड्राई फ्रूट्स और चिप्स भेजे जा रहे हैं। साथ ही ग्लूकोज और पानी की सप्लाई भी लगातार की जा रही है।
टनल धंसने की जांच करने के लिए कमेटी बनी
उत्तराखंड शासन ने भूस्खलन के अध्ययन और कारणों की जांच के लिए जांच समिति बनाई है। यह अब तक तक तीन बार घटनास्थल का दौरा कर चुकी है। कमेटी में यूएसडीएमए देहरादून के निदेशक डॉ. शांतनु सरकार, वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालय जियोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ. खइंग शिंग ल्युरई, जीएसआई के वैज्ञानिक सुनील कुमार यादव, वरिष्ठ वैज्ञानिक सीबीआरआई रुड़की कौशिल पंडित, उपनिदेशक भूतत्व एवं खनिजकर्म विभाग जी.डी प्रसाद और भूवैज्ञानिक यूएसडीएमए देहरादून तनड्रिला सरकार शामिल हैं।
फंसे हुए लोगों के परिजनों को मीडिया से दूर रखा जा रहा
टनल के अंदर फंसे मजदूरों के परिजन भी शुक्रवार सुबह घटनास्थल पर पहुंचे लेकिन उनको मीडिया से मिलने नहीं दिया जा रहा। हिमाचल से आए धर्म कुमार ने बताया कि उनका बेटा विजय कुमार मशीन ऑपरेटर है जो 6 दिन से टनल के अंदर है। वह तीन दिनों से यहां रुके हैं। टनल में फंसे मजदूर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के हैं। सिर्फ झारखंड के ही 16 मजदूर अंदर फंसे हुए हैं। इसके बाद 8 मजदूर यूपी के हैं।
वॉकी-टॉकी सेट से हो रही फंसे हुए लोगों से बात
टनल में फंसे कुछ लोगों के पास फोन थे जो अब डिस्चार्ज हो गए हैं। कुछ वॉकी-टॉकी सेट हैं, जिनकी मदद से उन्हें हिम्मत बंधाई जा रही है कि जल्द ही उन्हें बचा लिया जाएगा। उत्तरकाशी डीएम अभिषेक रोहिल्ला ने टनल के आस-पास पुलिस को पीछे करके ITBP के जवानों को तैनात किया है। ऑगर्स मशीन के आने के बाद NDRF और SDRF की 200 लोगों की टीम का काम कम हो गया है।
उत्तरकाशी टनल रेस्क्यू में अब तक क्या हुआ?
- 12 नवंबर: सुबह 4 बजे सिल्क्यारा टनल में मलबा आने से करीब 60-70 मीटर के एरिया में टनल ब्लॉक हो गई।
- 13 नवंबर: सबसे पहले रेस्क्यू टीम ने टनल का मलबा हटाने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुए। तब से मजदूरों को पाइप के जरिए लगातार ऑक्सीजन और खाना-पानी मुहैया कराया जा रहा है।
- 14 नवंबर: 35 इंच के डायमीटर का स्टील पाइप मलबे के अंदर डालने की प्रोसेस शुरू की। इसके लिए ऑगर्स ड्रिलिंग मशीन और हाइड्रोलिक जैक की मदद ली गई मगर सफलता नहीं मिली।
- 15 नवंबर: टनल के बाहर मजदूरों की पुलिस से झड़प हुई। वे रेस्क्यू ऑपरेशन में देरी से नाराज थे। PMO के हस्तक्षेप के बाद दिल्ली से हैवी ऑगर्स मशीन मंगाई गई। इसे एयरफोर्स का हरक्यूलिस विमान लेकर आया।
- 16 नवंबर: हैवी अमेरिकन ड्रिलिंग मशीन का इंस्टॉलेशन पूरा हुआ, शाम से रेस्क्यू ऑपरेशन दोबारा शुरू। करीब 41 इंजीनियर्स, ड्रिलिंग एक्सपर्ट और मशीन ऑपरेटर रात भर रेस्क्यू में लगे।
- 17 नवंबर: 30 मीटर की ड्रिलिंग के बाद दोपहर 12 बजे ऑगर्स मशीन के सामने कठोर चीज आने से ड्रिलिंग रुकी। इसके बाद काम शुरू नहीं हो सका।
रेस्क्यू के लिए तीसरी हैवी ऑर्गस मंगवाई गई थी, जो शुक्रवार को चट्टान के सामने आने से खराब हो गई।
PMO, गृह मंत्रालय और CM की भी काम पर निगरानी
राहत और बचाव कार्य की निगरानी PMO, गृह मंत्रालय और खुद उत्तराखंड के CM पुष्कर सिंह धामी कर रहे हैं। PMO के हस्तक्षेप के बाद ही अमेरिका से हैवी ड्रिलिंग मशीन ऑगर्स मंगाई जा सकी। उत्तराखंड सरकार ने घटना की जांच के लिए छह सदस्यीय कमेटी बनाई है। कमेटी ने अपनी जांच शुरू भी कर दी है।