उत्तरकाशी टनल में गुरुवार दोपहर से खुदाई बंद
50 साल के चौधरी लखीमपुर खीरी के रहने वाले हैं। जिस काम की मजदूरी मिलती है, वो कर लेते हैं। कोई तयशुदा जॉब नहीं है। परिवार में पत्नी, दो बेटियां और एक बेटा है। पहले दो बेटे थे, बड़ा बेटा दीपू मुंबई में ब्रिज कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूरी करता था। वहां पिछले साल एक हादसा हुआ और उसकी मौत हो गई।
चौधरी का छोटा बेटा मनजीत अभी जिंदगी और मौत के बीच उसी टनल में फंसा हुआ है, जहां उसके अलावा 40 और मजदूरों की जिंदगी अटकी हुई है। चौधरी को जैसे ही खबर मिली कि उनका बेटा टनल में फंस गया है, वह भागते-दौड़ते उत्तरकाशी चले आए।
पिछले 13 दिन से चौधरी सुबह से शाम रोज टनल का मुहाना देखते हैं, लेकिन देर शाम फिर लौट जाते हैं, इस उम्मीद में कि अगले सूरज के साथ उनका बेटा मनजीत भी बाहर निकलेगा।
चौधरी बोले- अब सब्र टूट रहा है
आज सुबह मेरी मनजीत से हेडफोन लगाकर बात करवाई गई। मैंने पूछा- बेटा कैसे हो, बोला- हम ठीक हैं, अभी सोकर उठे हैं, थोड़ी देर में खाना खाएंगे, जो पाइप से आया है। जो लोग अंदर फंसे हैं आपस में बातचीत करते रहे हैं, ऐसे ही समय बीत रहा है।
वो बोला- ‘जल्दी कोशिश करके निकाल लो’ मैंने कहा- ‘कटाई चल रही है, रास्ते में कुछ लोहा आ गया था।’ उधर से जवाब आया कि- ‘हम लोग इधर से कोई खुदाई नहीं कर रहे। कोई छेड़छाड़ नहीं करने को कहा गया है।’
चौधरी निराशा से भरी आवाज में कहते हैं, ‘मैं एक बेटा कंस्ट्रक्शन एक्सीडेंट में खो चुका हूं, दूसरा बेटा नहीं खोना चाहता। मेरा सब्र टूट रहा है, सुबह निकलेगा, शाम को निकलेगा, बस थोड़ी देर, अब तक। ये सब सुनकर हैरान हो रहे हैं। समय बढ़ता जा रहा है आज 13 दिन पूरे हो गए हैं।’
गब्बर ने कहा था- टनल का काम रिस्की है
कोटद्वार पौड़ी के रहने वाले जयमल सिंह नेगी के भाई गब्बर सिंह नेगी टनल में फोरमैन का काम करता है। गब्बर भी टनल में फंसा हुआ है। जयमल अपने भाई के टनल हादसे में फंसे जाने की खबर सुनते ही उत्तरकाशी चले आए।
जयमल अपने भाई गब्बर के बारे में बात करते हुए भावुक हो जाते हैं, कहते हैं- ‘गब्बर ने मुझे कई बार कहा कि टनल का काम रिस्की है, लेकिन कौन रिस्क नहीं लेता है। मुझे भरोसा है कि गब्बर बाकी 40 मजदूरों के रेस्क्यू में अंदर मदद करेगा और दूसरों की चिंता पहले करेगा। वो सबसे आखिरी में बाहर आएगा।’
रेस्क्यू ऑपरेशन में कहां आ रही दिक्कत?
टनल में रेस्क्यू ऑपरेशन में सिलकियारा साइड वाले मुहाने से हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग करके पाइप बिछाकर पैसेज बनाया जा रहा है। ये ड्रिलिंग अमेरिकी ऑर्गर मशीन से की जा रही है। लोहे के पाइप के इस पैसेज के जरिए ही मजदूरों को रेस्क्यू किया जाएगा।
टनल में मजदूरों और बाहरी मुहाने के बीच करीब 60 मीटर का मलबा फंसा हुआ है, इसी मलबे के बीच से ड्रिलिंग की जा रही है। ये ड्रिलिंग 46.8 मीटर तक हो चुकी है, लेकिन अभी 14-15 मीटर की ड्रिलिंग और बाकी है।
23 नवंबर को दिन में ड्रिलिंग के दौरान रास्ते में कोई मेटल बॉडी आ गई जिसे काटते हुए ऑर्गर मशीन के ब्लेड्स बुरी तरह से खराब हो गए और ऑर्गर मशीन जिस प्लेटफॉर्म पर रखी हुई थी, वो कंक्रीट का प्लेटफॉर्म भी टूट गया। इसके बाद ड्रिलिंग बंद हो गई।
ड्रिलिंग के रास्ते में मेटल बॉडी आई थी उसे हटाने के लिए मैनुअल ड्रिलिंग और वेल्डिंग कटर का सहारा लिया गया। OSD उत्तराखंड सरकार और पीएमओ के पूर्व सलाहकार भास्कर खुलबे ने हमसे बातचीत में कहा था- हमने जिस वेल्डिंग कटर से मेटल काटने की कोशिश की, उस कटर की गैस का धुआं मजदूरों तक पहुंच रहा है, इसके बाद हमने कटिंग बंद कर दी।
हालांकि पॉजिटिव बात ये है कि अगर उन तक धुआं पहुंच रहा है मतलब हम लक्ष्य के बेहद करीब हैं।
खुलबे ने गुरुवार को कहा था कि हम 12-14 घंटे में मजदूरों तक पहुंच जाएंगे। फिर उन्हें NDRF की सहायता से बाहर लाने के लिए 2 से 3 घंटे लगेंगे।
रेस्क्यू के लिए अभी 15 घंटे का और लगेगा वक्त, 18 मीटर की ड्रिलिंग बाकी
पिछले कम से कम 31 घंटे से ड्रिलिंग बंद है। ड्रिलिंग चालू होने के बाद भी अगर आगे सब कुछ ठीक रहता है तो ड्रिलिंग और रेस्क्यू मिलाकर 16 घंटे लगेंगे। खुलबे ने बताया, ‘नए सिरे से पाइप्स की रीअसेम्बलिंग की जा रही है। 6 मीटर के पाइप को एसेंबलिंग, वेल्डिंग और पुशिंग करने में 4 घंटे का टाइम लगेगा। हमारा अनुमान है कि हमें मजदूरों तक पहुंचने के लिए 60 मीटर की खुदाई करनी है, जिसमें 18 मीटर की खुदाई बची है।
खुलबे कहते हैं, ‘6 मीटर का एक पाइप है, मतलब 3 पाइप डाले जाने हैं। 1 पाइप डालने में 4 घंटे के हिसाब से कुल 12-14 घंटे का टाइम रेस्क्यू शुरू होने में लग सकता है।’
इतना स्लो क्यों है रेस्क्यू, 13 दिन में क्या हुआ?
12 नवंबर: सुबह करीब साढ़े 5 बजे ब्रम्हखाल यमुनोत्री हाईवे पर स्थित निर्माणाधीन टनल के सिलक्यारा छोर के पास मलबा गिरने की खबर आई, मलबा गिरने से अंदर काम कर रहे 41 मजदूर फंस गए। सुबह करीब 9 बजे रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हुआ। बचाव कार्य के तहत पहली कोशिश की गई कि टनल में 55 मीटर लंबाई में मौजूद मलबे को भारी-भरकम एक्सकेवेटर मशीन से कुरेदकर बाहर निकाला जाए, लेकिन ऐसा करने पर और ज्यादा मलबा गिरने लगा और रेस्क्यू ऑपरेशन में कोई सफलता हाथ नहीं लगी।
13 नवंबर: एक्सकेवेटर से खुदाई करते हुए करीब 20 मीटर तक के मलबे को हटाया गया, लेकिन फिर ऊपर से मलबा गिरा और खुदाई किया हुआ हिस्सा 14 मीटर ही बचा, मतलब 6 मीटर खाली की गई सुरंग की जगह में फिर से मलबा भर गया। इसके बाद रेस्क्यू का नया प्लान तैयार किया गया, जिसमें लोकल ऑगर मशीन और ज्यादा चौड़े पाइप के जरिए ड्रिल करने की योजना बनाई गई, ताकि अंदर फंसे हुए मजदूरों को सुरक्षित रूप से बाहर निकाला जा सके।
14 नवंबर: सुबह ऑगर मशीन और ड्रिलिंग पाइप टनल साइट पर पहुंच गए, लेकिन ऑगर मशीन से मलबे के अंदर खुदाई रात 10 बजे तक शुरू हो पाई। हालांकि इसके बाद भी रेस्क्यू प्लान में कोई सफलता मिलती नहीं दिख रही थी, मलबा गिरना लगातार जारी रहा। इसके बाद रेस्क्यूअर्स ने फैसला किया कि बचाव कार्य के लिए अमेरिकी स्टेट ऑफ द आर्ट ऑगर ड्रिलिंग मशीन लाई जाए।
15 नवंबर: दिन शुरू होते ही अमेरिकी ऑगर मशीन के कलपुर्जे टनल साइट पर पहुंचना शुरू हो गए। सुबह दिन निकलने तक टनल के अंदर ड्रिलिंग साइट तक इस मशीन को असेंबल करने का काम किया गया। दिन में टनल में फंसे मजदूर के परिजन ने अपनों की चिंता जताते हुए टनल कंस्ट्रक्शन कंपनी के खिलाफ प्रदर्शन और नारेबाजी की।
16 नवंबर: सुबह करीब 10 बजे अमेरिकी ऑगर मशीन से मलबे के बीचों-बीच ड्रिलिंग शुरू हो सकी। शाम 4 बजे तक ये मशीन सिर्फ 9 मीटर तक ही ड्रिलिंग कर पाई। रेस्क्यूअर्स को इस बात की चिंता थी कि इस मशीन से भी ड्रिलिंग काफी स्लो हो रही थी।
17 नवंबर: सुबह 9 बजे तक मशीन ने करीब 20 मीटर तक ड्रिलिंग की। 22 मीटर तक ड्रिलिंग के एक बड़ी चट्टान आने के बाद मशीन रोक दी गई। दोपहर करीब 3 बजे एक जोरदार क्रैकिंग साउंड आया, इसके बाद रेस्क्यू का काम रोक दिया गया। एक्सपर्ट्स का कहना था कि अगर ड्रिलिंग जारी रहती है तो और मलबा गिरने का खतरा है।
18 नवंबर: 24 घंटे तक अमेरिकी ऑगर मशीन से ड्रिलिंग का काम बंद रहा। 18 को सुबह 10 बजे ये शुरू हो पाया। रेस्क्यूअर्स ने बचाव के लिए दूसरे प्लान पर सोचना शुरू किया और इसके तहत आड़ी खुदाई के साथ खड़ी खुदाई करने के विकल्प पर चर्चा हुई। राज्य और केंद्र की एजेंसियों के शीर्ष अधिकारियों का साइट पर दौरा बढ़ता गया।
19 नवंबर: कोशिशें थोड़ी सफल हो रही थीं, लेकिन अब भी तेजी से ड्रिलिंग नहीं हो पा रही थी, रेस्क्यू का दूसरा हफ्ता शुरू हो चुका था। 5 एजेंसियों को रेस्क्यू प्रोग्राम में शामिल किया गया। ONGC, सतलुज जल विद्युत निगम, रेल विकास निगम लिमिटेड, नेशनल हाइवेज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड, टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड को अपनी-अपनी जिम्मेदारियां सौंपी गईं।