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मां अन्नपूर्णा दरबार में तीन दिवसीय मेला

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श्योपुर 16.04.2024
मां अन्नपूर्णा दरबार में तीन दिवसीय मेला शुरू, दूर-दूर से झंडा चढ़ाने आएंगे भक्तगण
– जनपद पंचायत कराहल की ओर से नवरात्र में हर साल लगाया जाता है मेला।
श्योपुर ब्यूरोचीफ नबी अहमद कुर्रैशी
चैत्र नवरात्रि की सप्तमी से मां अन्नपूर्णा दरबार पनवाड़ा में तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया शुरू हो गया है। पनवाड़ा माता मंदिर पर हर साल जनपद पंचायत कराहल के तत्वाधान में मेला लगाया जाता है। जनपद पंचायत की ओर से नवरात्र मेले की औपचारिक शुरुआत दुर्गा सप्तमी पर मंदिर में महाआरती के साथ हो गई है। 19 अप्रैल को झंडा चढ़ाने के साथ मेले का समापन किया जाएगा।
चैत्र नवरात्र पर्व में कराहल क्षेत्र में बिराजी पनवाड़ा की अन्नपूर्णा माता मंदिर में मेले के दौरान 50 से अधिक गांव से झंडा लेकर पदयात्री आएंगे। खास बात यह है कि वनांचल के लोग अन्नपूर्णा माता मंदिर पर झंडा चढऩे के आधार पर ही अगले संवत का अनुमान लगाते हैं। यदि सभी झंडे बिना झुके हुए सीधे चढ़े तो इसे मातारानी के खुशी का संकेत माना जाता है। पनवाड़ा की अन्नपूर्णा माता मंदिर पर तीन दिवसीय नवरात्र मेले में हवाई झूला, के अलावा डेढ़ सौ दुकानें लग गई है। मां अन्नपूर्णा के दरबार में जो भी भक्त मनोकामनाएं लेकर पहुंचता है उसकी मनोकामनाएं पूरी होती है। कराहल के पनबाड़ी में दूरदराज से श्रद्धालु पहुंचते हैं। नवरात्र के दिनों में यहां मेला लगता है। श्योपुर जिले के अलावा मुरैना, शिवपुरी व राजस्थान से भी लोग मां के दरबार में मत्था टेकने आते हैं।
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तीन रूपों में दर्शन देती है मां अन्नपूर्णा
जिले की कराहल तहसील के पनवाड़ा में मां अन्नपूर्णा तीन स्वरूप में अपने भक्तों को दर्शन देती हैं। इसके अलावा यहां और भी कई किवदंतियां मिलती है। यहां 84 प्राचीन बाबड़ी बनी हुई है। बताते हैं कि यहां पर महाभारत काल में पांडवों ने अज्ञातवास बिताया था। भीम की पत्नी हिडम्बा ने मां अन्नपूर्णा की तपस्या कर मां को प्रसन्न किया था। हिडम्बा ने मां अन्नपूर्णा की स्थापना कराई। मंदिर पूर्ण रूप से मिट्टी से ढक गया इसके बाद संवत 1152 में बंजारों का डेरा पनवाडा में रुकते थे, जंगल होने के कारण डेरा प्रमुख लाखा बंजारा जागीरदार हुआ करता था। यह मां का भक्त था और दान पुण्य भी अधिक करता था। बताते हैं कि लाखा बंजारा एक दिन अपने बछड़ों को लेकर व्यापार करने दूसरी जगह जाने लगा तभी एक पांच वर्षीय बालिका लाखा बंजारे से बोली मेरा घर इस मिट्टी में वर्षों से बंद है। इस दौरान लाखा ने बालिका की बात को अनसुना कर दिया और आगे चलने लगा तो वह बालिका भी आगे चलने लगी। इस दौरान एक पत्थर पर पद चिन्ह बन गए। इसके बाद घबराए लाखा ने बालिका से पूछा बताओ घर कहां है तब उसने एक टीले की तरफ इशारा किया लाखा में अपने डेरे के सहयोग से टीले को खोदा तो उसमें माता की मूर्ति निकली। इसके बाद उसने यहां मंदिर का निर्माण करा दिया।

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