असम विधानसभा ने गुरुवार (29 अगस्त) को मुस्लिम शादियां और तलाक रजिस्टर करने वाले 90 साल पुराने कानून-
असम मुस्लिम मैरिज एंड डिवोर्स रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1935 को रद्द करने का बिल पास किया। इस बिल का नाम द असम रिपीलिंग बिल, 2024 है।
असम सरकार के मंत्री जोगन मोहन ने विधानसभा में बताया कि पुराने कानून में 21 साल से कम उम्र के पुरुष और 18 साल से कम
उम्र की महिला की शादी (नाबालिगों की शादी या बाल विवाह) का रजिस्ट्रेशन किए जाने की गुंजाइश थी।
पुराने कानून के रद्द किए जाने के बाद मुस्लिम समाज के लोगों को शादी और तलाक का रजिस्ट्रेशन करना जरूरी होगा। 22 अगस्त को असम कैबिनेट ने बिल को मंजूरी दी थी। बिल में 2 विशेष प्रावधान हैं। पहला- मुस्लिम शादी का रजिस्ट्रेशन अब काजी नहीं सरकार करेगी। दूसरा- बाल विवाह के पंजीकरण को अवैध माना जाएगा।
सरमा बोले- हमारा उद्देश्य बाल विवाह रोकना
विधानसभा में इस बिल पर चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने कहा कि हमारा उद्देश्य सिर्फ बाल विवाह खत्म करना नहीं है। हम काजी सिस्टम भी खत्म करना चाहते हैं। हम मुस्लिम शादी और तलाक को सरकारी तंत्र के तहत लाना चाहते हैं।
सरमा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक सभी शादियों का रजिस्ट्रेशन किया जाना जरूरी है, लेकिन ऐसा करने के लिए राज्य काजियों जैसी निजी संस्था को सपोर्ट नहीं कर सकता है।
हालांकि विपक्ष ने असम सरकार के इस फैसले को मुस्लिमों के प्रति भेदभावपूर्ण बताया है। विपक्ष का कहना है कि चुनावी साल में वोटर्स का ध्रुवीकरण करने के लिए इस एक्ट को लाया गया है।
मंत्री बोले- पिछले कानून में बाल विवाह होने की गुंजाइश थी
इस बिल को 22 अगस्त को रिवेन्यू एंड डिजास्टर मिनिस्टर जोगन मोहन ने विधानसभा में पेश किया था। इसके साथ उन्होंने असम रिपीलिंग ऑर्डिनेंस, 2024 भी पेश किया था। उन्होंने कहा कि असम मुस्लिम मैरिज एंड डिवोर्स रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1935 में 21 साल से कम उम्र के पुरुष और 18 साल से कम उम्र की महिला की शादी का रजिस्ट्रेशन किए जाने की संभावना थी।
उन्होंने बताया कि इस कानून में ऐसा कोई प्रावधान भी नहीं था कि हम मॉनिटर कर सकें कि पूरे राज्य में यह कानून लागू हो रहा है या नहीं। इसमें मुकदमे भी बहुत दर्ज होते थे। इस कानून को बाल विवाह और जबरन शादियां करवाने के लिए मान्यता प्राप्त लाइसेंसी (मुस्लिम मैरिज रजिस्ट्रार) और नागरिकों द्वारा गलत तरीके से इस्तेमाल करने की भी गुंजाइश थी।
मंत्री जोगन मोहन ने यह भी बताया कि इस कानून के तहत शादियों और तलाक का रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी नहीं था। अगर रजिस्ट्रेशन होता भी था, तो वह इतना अनौपचारिक होता था कि उसमें कई नियमों के उल्लंघन की गुंजाइश रहती थी। यह आजादी के पहले का एक्ट है, जिसे तत्कालीन ब्रिटिश इंडिया सरकार ने असम प्रांत के मुस्लिमों के धार्मिक और सामाजिक कार्यों के लिए लागू किया था।
असम में 81% बाल विवाह के मामलों में कमी आई
इससे पहले जुलाई में कैबिनेट ने असम मुस्लिम निकाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम, 1935 को हटाकर अनिवार्य रजिस्ट्रेशन लॉ को लाने के लिए एक बिल को मंजूरी दी थी। 1935 के कानून के तहत स्पेशल कंडीशन में कम उम्र में निकाह करने की अनुमति दी जाती थी।
जुलाई में जारी इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन रिपोर्ट ने बाल विवाह से निपटने के लिए असम सरकार के प्रयासों की सराहना की। रिपोर्ट में कहा गया कि कानूनी कार्रवाई के जरिए असम में बाल विवाह के मामलों को कम किया है। 2021-22 और 2023-24 के बीच राज्य के 20 जिलों में बाल विवाह के मामलों में 81% की कमी आई है।’मेरे पति ने मुझे छोड़ दिया और इसके बाद तीन शादियां कीं। आज मेरे बेटे की देखभाल करने वाला कोई नहीं है। मैं छह साल से पिता के घर बैठी हूं और वही मेरा खर्च उठा रहे हैं। उनके बाद मेरा क्या होगा, मुझे नहीं पता।’ असम के मोयराबारी जिले की रहने वाली तसलीमा बेगम की जिंदगी इसी उलझन में गुजर रही है।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने 4 अगस्त को तीन बड़े ऐलान किए। पहला यह कि जल्द ही असम में सरकारी नौकरी उन्हीं लोगों को मिलेगी, जो असम में ही पैदा हुए हैं। दूसरा, लव-जिहाद के मामले में दोषी को उम्रकैद की सजा दी जाएगी।
तीसरा, असम सरकार ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच जमीन की बिक्री के संबंध में भी फैसला लिया है। हालांकि सरकार इसे रोक नहीं सकती, लेकिन खरीद-बिक्री से पहले मुख्यमंत्री की सहमति लेना जरूरी कर दिया गया है। सरमा ने ये बातें BJP की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में कहीं।