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उत्तरकाशी टनल में दो मजदूरों की तबीयत बिगड़ी

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उत्तराखंड के उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सिल्क्यारा टनल में 6 दिन से फंसे 40 मजदूरों में से 2 की तबीयत शुक्रवार दोपहर को खराब होने की जानकारी मिली है। ड्रिलिंग के काम में लगी हैवी ऑगर मशीन के रास्ते में कठोर चीज आने से रेस्क्यू ऑपरेशन भी करीब दो घंटे के लिए रोकना पड़ा।

40 में से 2 मजदूरों की तबीयत खराब, एक को अस्थमा-दूसरे को डायबिटीज
इस बीच जानकारी मिली है कि अंदर फंसे 40 लोगों में से 2 की तबीयत खराब है। इनमें से एक मजदूर अस्थमा और दूसरा डायबिटीज से पीड़ित है। खाना और पानी भेजने वाले पाइप से इनकी दवाई भी नियमित तौर पर भेजी जा रही है। सुबह, दोपहर और शाम को इनकी बात इनके परिजनों या टनल बनवा रहे अधिकारियों से भी करवाई जा रही है। अंदर फंसे लोगों को खाने के लिए भुने और अंकुरित चने, बिस्किट, ड्राई फ्रूट्स और चिप्स भेजे जा रहे हैं। साथ ही ग्लूकोज और पानी की सप्लाई भी लगातार की जा रही है।

इंदौर से आ रही एक और मशीन, काम में आएगी तेजी
नेशनल हाईवेज एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (NHIDCL) के डायरेक्टर अंजू मनीष ने बताया कि इंदौर से बैकअप के लिए एक और मशीन एयरलिफ्ट की जा रही है। इससे रेस्क्यू ऑपरेशन को और तेजी मिलेगी। उन्होंने कहा कि मशीन के सामने कठोर चीज आ जाने के बाद से फिर से काम शुरू कर दिया गया है। ऑगर मशीन के जरिए 6 फीट लंबे चार पाइप मलबे में रास्ता बनाते हुए अंदर भेजे जा चुके हैं। इस ऑपरेशन में थाईलैंड, नार्वे, फिनलैंड समेत कई देशों के एक्सपर्ट से ऑनलाइन सलाह ली जा रही है।

इस बचाव कार्य पर उत्तराखंड सीएम, गृह मंत्रालय, पीएमओ समेत अंतरराष्ट्रीय मीडिया की भी नजरें टिकी हैं।

फंसे हुए लोगों के परिजनों को मीडिया से दूर रखा
टनल के अंदर फंसे मजदूरों के परिजन भी शुक्रवार सुबह घटनास्थल पर पहुंचे लेकिन उनको मीडिया से मिलने नहीं दिया जा रहा। हिमाचल से आए धर्म कुमार ने बताया कि उनका बेटा विजय कुमार मशीन ऑपरेटर है जो 6 दिन से टनल के अंदर है। वह तीन दिनों से यहां रुके हैं। टनल में फंसे मजदूर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के हैं। सिर्फ झारखंड के ही 16 मजदूर अंदर फंसे हुए हैं। इसके बाद 8 मजदूर यूपी के हैं।

गुरुवार को रात भर हुआ ड्रिलिंग का काम, दो-दो घंटे का लेना पड़ रहा ब्रेक
टनल में शुक्रवार सुबह से दोबारा रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया गया था। अमेरिका से आई ऑगर मशीन ने गुरुवार (16 नवंबर) को रात भर ड्रिलिंग की। रात भर में 6-6 मीटर के चार पाइप मलबा हटाकर टनल में भेजे गए थे। एक पाइप के अंदर जाने से लेकर उसमें दूसरे पाइप की वेल्डिंग करने और उसके ठंडा होने के प्रोसेस में दो घंटे लग रहे हैं। इसलिए ड्रिलिंग का काम बीच-बीच में 2-2 घंटे के लिए रोकना पड़ रहा है।

ये तस्वीर शुक्रवार सुबह की टनल के बाहर की है। पुलिस ने चारों तरफ बैरिकेडिंग कर किया है और पब्लिक को आने नहीं दे रही है।

तीसरी मशीन से ड्रिलिंग के लिए बनाई गई स्पेशल-40 की टीम
हैवी ऑगर मशीन से ड्रिलिंग होने से पहले दो मशीनें इस काम में फेल हो चुकी थीं। गुरुवार रात से तीसरी मशीन से ड्रिलिंग का काम शुरू किया गया। इसमें ड्रिलिंग एक्सपर्ट, मशीन ऑपरेटर और इंजीनियर्स समेत 40 लोगों की स्पेशल टीम बनाई गई है। टीम ने शुक्रवार सुबह 12 बजे तक 30 मीटर तक ड्रिल कर लिया था। मशीन को कुल 60-70 मीटर तक खुदाई करनी है। 12 अक्टूबर को सुबह 4 बजे टनल धंसने से करीब 40 मजदूर अंदर फंसे हैं।

अमेरिकी ड्रिलिंग मशीन ऑगर को अलग-अलग पार्ट्स में 15 नवंबर को दिल्ली से उत्तराखंड के चिन्यालीसौड़ हेलिपैड लाया गया। यहां से इसे उत्तरकाशी ले जाया गया।

20 मीटर बाद ड्रिलिंग की स्पीड कम हो गई
20 मीटर यानी टनल में तीन पाइप जाने के बाद मशीन की ड्रिलिंग की स्पीड कम करनी पड़ी। वजह है कि इसके बाद मलबा आने से टनल धंसी है और मलबा कमजोर है। मशीन जितना मलबा हटा रही थी, ऊपर से उतना ही मलबा आता जा रहा था, इसलिए यहां पर स्पीड से ड्रिलिंग नहीं की जा सकी। कोशिश है कि शुक्रवार को ड्रिलिंग का काम पूरा कर लिया जाए और फंसे हुए लोगों को रेस्क्यू किया जाए। मलबे के अंदर दो मशीनें भी दबी हैं। ड्रिलिंग के दौरान इंजीनियर ध्यान दे रहे हैं कि वे ऑगर मशीन के रास्ते में न आएं।

मलबा कितनी दूर तक फैला है, किसी को नहीं पता
टनल में आया मलबा कितनी दूर तक फैला है, यह अभी किसी को पता नहीं है। इसका पता न तो टनल के दोनों छोर पर मौजूद लोगों को है और न ही अंदर फंसे लोगों को। फिलहाल केवल अनुमान लगाया जा रहा है कि 60 मीटर की टनल धंसी है तो मलबा इतने ही मीटर में फैला होगा। एक आशंका यह भी जताई जा रही है कि गीला मलबा टनल के अंदर 60 मीटर से ज्यादा इलाके में फैल गया हो। ड्रिलिंग एक्सपर्ट और इंजीनियर्स इसकी भी तैयारी करके चल रहे हैं। एक्सपर्ट ये भी पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं कि मशीनें मलबे में कहां तक पहुंची हैं। इसके लिए वो जियोग्राफी एनालिसिस करने की तैयारी कर रहे हैं। जानकार मान रहे हैं कि आज देर रात टनल में फंसे मजदूर बाहर आ सकते हैं।

वॉकी-टॉकी सेट से हो रही फंसे हुए लोगों से बात

टनल में फंसे कुछ लोगों के पास फोन थे जो अब डिस्चार्ज हो गए हैं। कुछ वॉकी-टॉकी सेट हैं, जिनकी मदद से उन्हें हिम्मत बंधाई जा रही है कि जल्द ही उन्हें बचा लिया जाएगा। उत्तरकाशी डीएम अभिषेक रोहिल्ला ने टनल के आस-पास पुलिस को पीछे करके आइटीबीपी के जवानों को तैनात किया है। ऑगर मशीन के आने के बाद NDRF और SDRF की 200 लोगों की टीम का काम कम हो गया है।

पीएमओ, गृह मंत्रालय और सीएम की मामले पर नजर
राहत और बचाव कार्य की निगरानी पीएमओ, गृह मंत्रालय और खुद उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी कर रहे हैं। पीएमओ के हस्तक्षेप के बाद ही अमेरिका से हैवी ड्रिलिंग मशीन ऑगर मंगाई जा सकी। उत्तराखंड सरकार ने घटना की जांच के लिए छह सदस्यीय कमेटी बनाई है। कमेटी ने अपनी जांच शुरू भी कर दी है।

उत्तरकाशी टनल रेस्क्यू में अब तक क्या हुआ?

  • 12 नवंबर: सुबह 4 बजे सिल्क्यारा टनल में मलबा आने से करीब 60-70 मीटर के एरिया में टनल ब्लॉक हो गई।
  • 13 नवंबर: सबसे पहले रेस्क्यू टीम ने टनल का मलबा हटाने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुए। तब से मजदूरों को पाइप के जरिए लगातार ऑक्सीजन और खाना-पानी मुहैया कराया जा रहा है।
  • 14 नवंबर: 35 इंच के डायमीटर का स्टील पाइप मलबे के अंदर डालने की प्रोसेस शुरू की। इसके लिए ऑगर ड्रिलिंग मशीन और हाइड्रोलिक जैक की मदद ली गई मगर सफलता नहीं मिली।
  • 15 नवंबर: टनल के बाहर मजदूरों की पुलिस से झड़प हुई। वे रेस्क्यू ऑपरेशन में देरी से नाराज थे। PMO के हस्तक्षेप के बाद दिल्ली से हैवी ऑगर मशीन मंगाई गई। इसे एयरफोर्स का हरक्यूलिस विमान लेकर आया।
  • 16 नवंबर: हैवी अमेरिकन ड्रिलिंग मशीन का इंस्टॉलेशन पूरा हुआ, शाम से रेस्क्यू ऑपरेशन दोबारा शुरू। करीब 40 इंजीनियर्स, ड्रिलिंग एक्सपर्ट और मशीन ऑपरेटर रात भर रेस्क्यू में लगे।
  • 17 नवंबर: 30 मीटर की ड्रिलिंग के बाद दोपहर 12 बजे ऑगर मशीन के सामने कठोर चीज आने से ड्रिलिंग रुकी। करीब 2 घंटे बाद रेस्क्यू फिर शुरू।

अमेरिकी ड्रिलिंग मशीन ऑगर की खासियत…
अमेरिकी मशीन ऑगर 1 घंटे में 5 मीटर तक ड्रिल कर सकती है। मशीन में मलबा निकालने के लिए लगे पाइप का साइज़ नौ सौ एमएम का है। नए पाइप को वेल्डिंग करके जोड़ने में करीब एक घंटा लगता है तो एक घंटा ठंडा होने और इसे आगे भेजने के लिए तैयार होने में लगता है।

ऑगर मशीन ट्रैक्टर के हैरो की तरह मलबे को काटकर पीछे की ओर फेंकती रहती है और आगे रास्ता बनाती जाती है। ऑगर मशीन को टनल के मेन गेट के सामने पर रखा गया है। यह मलबे के ढेर के ठीक सामने की ओर से ड्रिलिंग कर रही है।रेस्क्यू के लिए 14 नवंबर को ड्रिल मशीन मंगाई गई थी। मलबा ज्यादा होने से ये मशीन काम नहीं कर पाई। इसके बाद हैवी ऑगर मशीन मंगाई गई।

ये पुरानी ऑगर मशीन का टनल के अंदर का विजुअल है। इसकी जगह हैवी मशीन को इंस्टॉल कर दिया गया है।

क्यों लानी पड़ी हैवी ऑगर मशीन?
इंजीनियर और ड्रिलिंग एक्सपर्ट आदेश जैन ने बुधवार देर रात बताया, ’14 नवंबर तक 6 बार मलबा धंस चुका है और इसका दायरा 70 मीटर तक बढ़ चुका है। पहले जो ड्रिलिंग मशीन लगी थी, केवल 45 मीटर तक ही काम कर सकती है, इसलिए बड़ी मशीन लाई गई है। टनल में फंसे सभी लोग 101% सुरक्षित हैं। गुरुवार शाम या रात तक सभी को सुरक्षित निकाल लिया जाएगा।’

प्लास्टर नहीं होने की वजह से टनल का 60 मीटर हिस्सा धंसा
NDRF के असिस्टेंट कमांडर करमवीर सिंह के मुताबिक, ‘साढ़े 4 किलोमीटर लंबी और 14 मीटर चौड़ी इस टनल के स्टार्टिंग पॉइंट से 200 मीटर तक प्लास्टर किया गया था। उससे आगे कोई प्लास्टर नहीं था, जिसकी वजह से ये हादसा हुआ।’

जिस स्टील के पाइप के जरिए मजदूरों को निकाला जाएगा, उसकी लंबाई के बारे में कोई जानकारी नहीं आई है। टनल के 60 मीटर के हिस्से में मलबा गिरा है, जो अब बढ़कर 70 मीटर हो गया है।

थाईलैंड से क्यों ली जा रही मदद
टनल में फंसे मजदूरों को निकालने के लिए थाईलैंड के एक्सपर्ट की मदद ली जा रही है। इसको लेकर खलखो ने बताया, 2018 में थाईलैंड में एक जूनियर एसोसिएशन फुटबॉल टीम के 12 मेंबर्स और उनके कोच प्रैक्टिस सेशन के बाद थाईलैंड की गुफा लुआंग नांग नॉन घूमने गए थे। तभी अचानक तेज बारिश होने लगी और गुफा में बाढ़ आने से बाहर निकलने का रास्ता बंद हो गया था।

करीब 18 दिनों तक ये फुटबॉल टीम गुफा के अंदर फंसी रही थी। थाईलैंड के एक्सपर्ट ने उनको सफलतापूर्वक बचा लिया था। ऐसे में टीम उत्तरकाशी घटना में उनसे सलाह ले रही है। हालांकि, खलखो ने कहा- थाईलैंड के एक्सपर्ट भारत नहीं आएंगे। वे ऑनलाइन मदद कर रहे हैं।

सबसे ज्यादा झारखंड और यूपी के मजदूर फंसे
स्टेट डिजाजस्टर मैनेजमेंट के मुताबिक, टनल के अंदर झारखंड के 15, उत्तर प्रदेश के 8, ओडिशा के 5, बिहार के 4, पश्चिम बंगाल के 3, उत्तराखंड के 2, असम के 2 और हिमाचल प्रदेश का एक मजदूर शामिल है। बचाव कार्य देखने पहुंचे CM पुष्कर सिंह धामी ने बताया- सभी मजदूर सुरक्षित हैं, उनसे वॉकी-टॉकी के जरिए संपर्क किया गया है। खाना-पानी पहुंचाया जा रहा है।

फंसे हुए मजदूरों में से एक गब्बर सिंह नेगी के बेटे को मंगलवार को अपने पिता से कुछ सेकेंड के लिए बात करने की अनुमति दी गई। आकाश सिंह नेगी ने न्यूज एजेंसी PTI को बताया- मेरे पिता सुरक्षित हैं। उन्होंने हमसे चिंता नहीं करने को कहा।

रेस्क्यू टीम के सामने दिख रहे इस मलबे को हटाने का प्रयास जारी है। इसके पीछे मजदूर फंसे हैं।

चारधाम प्रोजेक्ट का हिस्सा है यह टनल
यह टनल चार धाम रोड प्रोजेक्ट के तहत बनाई जा रही है। 853.79 करोड़ रुपए की लागत से तैयार हो रही यह टनल हर मौसम में खुली रहेगी। यानी बर्फबारी के दौरान भी इसमें से लोग आना-जाना कर सकेंगे। इसके बनने के बाद उत्तरकाशी से यमुनोत्री धाम के बीच की दूरी 26 किमी तक कम हो जाएगी।

दरअसल, सर्दियों में बर्फबारी के दौरान राड़ी टाप क्षेत्र में यमुनोत्री हाईवे बंद हो जाता है। जिससे यमुना घाटी के तीन तहसील मुख्यालयों बड़कोट, पुरोला और मोरी का जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से संपर्क कट जाता है। चारधाम यात्रा को सुगम बनाने और राड़ी टाप में बर्फबारी की समस्या से निजात पाने के लिए यहां ऑलवेदर रोड परियोजना के तहत डबल लेन सुरंग बनाने की योजना बनी।

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